विपक्षी एकता:सपना या यथार्थ

विपक्षी एकता अर्थाथ विपक्ष की सारी पार्टियों का किसी एक पार्टी के विरोध में एकजुटता जो वास्तविकता में एक सपना बनकर ही रह गयी है। विपक्ष हमारे लोकतंत्र का एक ऐसा स्तंभ है जिसका मजबूत होना हमारे देश को मजबूत बनाता है पर जब यही विपक्ष खोखला हो तो देश तानाशाही की तरफ बढ़ने लगता है जो किसी भी मजबूत गणतंत्र के लिए शर्मनाक बात है।आज हमारे देश के विपक्ष में एकजुटता, कार्यशीलता, मार्गदर्शक और उद्देश्य की कमी‌ है। हमारा विपक्ष आज महंगाई, भ्रष्टाचारी, और यूनिफॉर्म सिविल कोड जैसे मुद्दों पर एक राय रखने में असमर्थ है।

         अंग्रेज़ी में एक कहावत है "THERE IS A BIG DIFFERENCE BETWEEN RAISING YOUR VOICE AND MAKING A NOISE"
         आज हमारा विपक्ष ने न‌ तो अपनी आवाज ही उठा पा रहा है और न ही शोर मचा पा रहा है। वर्तमान की परिस्थितियों के मद्देनजर विपक्षी एकता सपने से यथार्थ तभी बन सकती है जब विपक्ष के पास एक ऐसा नेता हो‌ जो सभी विपक्षी दलों को एकजुट कर सके और ऐसे मुद्दों को उठा सके जो शोर बनकर लोगों के कानों तक पहुंच सके। ये मुद्दे प्रधानमंत्री को नहीं बल्कि उनकी नीतियों को केंद्रीकृत करते हों जैसे आम आदमी पार्टी ने दिल्ली चुनाव में किया था क्योंकि कहीं न कहीं जनता का विश्वास विपक्ष से डगमगा गया है क्योंकि विपक्ष को जो मुद्दे नहीं उठाने चाहिए उसे वो जोर शोर से उठाता है और जो मुद्दे वास्तव में हैं उसपर चुप्पी साध ली जाती है। इसका निष्कर्ष यह है कि विपक्ष को अपनी नीतियों और उद्देश्यो को एकजुट करके जनता का विश्वास जीतना पड़ेगा अन्यथा एकतरफा सरकार और कमजोर विपक्ष देश‌ के गणतंत्र की नींव को कभी भी हिला सकते हैं। वास्तव में कोई भी पार्टी अपनी कमियों को दूर नहीं करना चाहती , जहां कांग्रेस अपने आप को मजबूत दिखाने के लिए किसी भी पार्टी के आगे झुकना नहीं चाहती तो वहीं बाकी पार्टियां भी कांग्रेस को कमजोर समझती हैं और उसे दूसरे नम्बर पर चाहती हैं। यहां सबकुछ अपने निजी लाभ को देखकर ही हो रहा है और जनता विवश हैं क्योंकि उसके पास कोई विकल्प ही नहीं बचता है।
           अब लोकतंत्र खतरे में है जैसे शब्द यथार्थ बनते नज़र आ रहे हैं।

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